Wednesday, March 16, 2011

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Thursday, January 13, 2011

मकर संक्रांति : करें सूर्य उपासना

हिंदू पौराणिक शास्त्रों में ग्रहों, नक्षत्रों और राशियों के बीच संबंधों का व्यापक उल्लेख मिलता है। ग्रहों के आपसी संबंध का असर इंसान पर भी स्पष्ट रूप से होता है। इसीलिए हमारे मनीषियों ने व्यापक जनहित में त्योहार और पर्व विशेष पर पूजा और दान आदि परंपराओं की व्यवस्था की जिससे आमजन ग्रहों के गोचर में होने वाले परिवर्तनों के कारण उससे होने वाले संभावित नुकसान से बच सकें।


मकर संक्रांति के अवसर पर किए जाने वाले दान-पुण्य की व्यवस्था के पीछे भी यही दूरदृष्टि है। पौराणिक कथाओं में सूर्य को जगत की आत्मा बताया गया है। सूर्य के बगैर इस जगत में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। पृथ्वीवासियों के लिए सूर्य ही एकमात्र प्रत्यक्ष देव हैं। इसीलिए सभी धर्मो के अनुयायी किसी न किसी रूप में सूर्य की पूजा करते हैं।

स्कंदपुराण के काशी खंड में वर्णित प्रसंग के अनुसार सूर्य की पत्नी संज्ञा सूर्य की गर्मी को सहन नहीं कर पा रही थीं। उन्होंने इससे बचने के लिए अपने तप से अपने ही रूप-रंग और शक्ल की स्त्री छाया बनाई और उससे प्रार्थना की कि वह सूर्य के साथ रहे और सूर्य को यह भेद न दे कि संज्ञा सूर्य से दूर है और छाया संज्ञा की हमशक्ल है। छाया से सूर्य को दो पुत्र और एक पुत्री प्राप्त हुए। उनमें से एक शनि हैं।

शनि महात्म्य के अनुसार शनि का जन्म होते ही उनकी दृष्टि पिता सूर्य पर पड़ी। परिणामस्वरूप तत्काल ही सूर्य कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गए। उनका सारथी अरुण पंगु हुआ और उनके घोड़े अंधे हो गए। इस प्रकार सूर्य ने महसूस किया कि शनि की दृष्टि महाविनाशकारी है। सूर्य ने अपने गुणों और अपने पुत्र शनि के गुणों की तुलना की और महसूस किया कि कुछ गड़बड़ है। सूर्य ने छाया को प्रताड़ित किया।


यह शनि को सहन नहीं हुआ और शनि सूर्य के परम शत्रु हो गए। यद्यपि सूर्य शनि से बैर भाव नहीं रखते हैं। पिता सूर्य से बदला लेने के लिए शनि ने शिवजी को अपना गुरु बनाया और उनकी तपस्या कर किसी का भी अनिष्ट करने की शक्ति का वरदान प्राप्त कर लिया। भगवान शिव ने शनि की भक्ति से प्रसन्न होकर शनि को न्यायाधीश बनाया और वरदान दिया कि शनि व्यक्ति के कर्मो के अनुसार अच्छे कर्मो के लिए व्यक्ति की उन्नति करेंगे और बुरे कर्मो के लिए उसे प्रताड़ित भी कराएंगे।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य वर्षर्पयत मेष से लेकर मीन तक एक-एक माह की अवधि के लिए सभी राशियों में भ्रमण करते हैं। १४ जनवरी को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं। मकर और कुंभ राशियां सूर्य के पुत्र शनि की राशियां हैं और शनि सूर्य से बैर रखता है।

दुश्मन की राशि मकर में सूर्य के प्रवेश करने और अगले दो महीनों के लिए शनि की मकर और कुंभ राशियों में सूर्य के रहने से और पिता-पुत्र में बैर भाव स्थिति से पृथ्वीवासियों पर किसी प्रकार का कुप्रभाव न पड़े, इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने तीर्थ स्नान, दान और धार्मिक कर्मकांड के उपाय सुझाए हैं। मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ से बने लड्डुओं का उपयोग करने और उसके दान के पीछे भी यही मंशा है।


ज्योतिष के अनुसार तेल शनि का और गुड़ सूर्य का खाद्य पदार्थ है। तिल तेल की जननी है, यही कारण है कि शनि और सूर्य को प्रसन्न करने के लिए इस दिन लोग तिल-गुड़ के व्यंजनों का सेवन करते हैं। तीर्थो पर स्नान और दान-पुण्य की व्यवस्था भी इसी उद्देश्य से रखी गई है कि पिता-पुत्र के बैर भाव से इस जगत के निवासियों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े और भगवान उसे किसी भी बुरी स्थिति से बचाएं।

सूर्य राज, सम्मान और पिता का कारक ग्रह हैं और शनि न्याय और प्रजा का कारक है। जन्म पत्रिका में सूर्य शनि की युति अथवा दृष्टि संबंध से ही पितृ दोष उत्पन्न होता है। लकवा और सिरदर्द जैसे रोगों से पीड़ित लोगों के लिए इस दिन दान-पुण्य वरदान माना गया है। ऋषि मुनियों ने अपने अनुभव के आधार पर यह व्यवस्थाएं आमजन के लिए प्रतिपादित की हैं। उन्होंने ग्रहों के प्रकोप और उनकी शांति के उपाय भी बताए हैं।
मकर संक्रांति के दिन से लोग मलमास के बंधन से मुक्त हो जाएंगे। विवाह, गृह प्रवेश और अन्य शुभ कार्यो के लिए लोगों को इस दिन का बेताबी से इंतजार रहता है। ज्योतिष शास्त्र में मलमास के दौरान शुभ कार्य अनिष्ट कारक माने जाते हैं। मकर संक्रांति से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में आ जाते हैं।

भारत में मकर संक्रान्ति के विविध रूप



संपूर्ण भारत में मकर संक्रांति विभिन्न रूपों में मनाया जाता है।
हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जलाता है। उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से 'दान का पर्व' है समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी सेवन एवं खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व होता है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है। महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर कपास, तेल, नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। बंगाल में गंगासागर में प्रतिवर्ष विशाल मेला लगता है। कहा जाता है-`सारे तीरथ बार बार लेकिन गंगा सागर एक बार। तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं। राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। अत: मकर संक्रांति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है।

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